OpenAI के CEO Sam Altman ने हाल ही में एक पॉडकास्ट इंटरव्यू में एक गहरी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का डर है कि कहीं भविष्य में उनके बच्चे के दोस्त AI चैटबॉट्स ना बन जाएं। यह चिंता सुनने में साधारण लग सकती है, लेकिन इसके पीछे छुपा है एक बहुत बड़ा सामाजिक और तकनीकी सवाल – क्या AI इंसानों की दोस्ती की जगह ले सकता है?
Altman की ये टिप्पणी Hard Fork नामक पॉडकास्ट के दौरान सामने आई, जहाँ उन्होंने माना कि आज AI चैटबॉट्स, जैसे कि ChatGPT, सैकड़ों मिलियन लोगों द्वारा रोज़मर्रा के कार्यों के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं। इसमें न केवल कंटेंट क्रिएशन, ईमेल जवाब देना या कोडिंग शामिल है, बल्कि कुछ लोग AI से भावनात्मक सहारा भी लेने लगे हैं — जैसे अकेलेपन में बात करना, भाव साझा करना आदि।
वर्ष 2025 में AI टेक्नोलॉजी का विकास इस स्तर पर पहुंच गया है कि AI एजेंट्स अब cognitive work यानी सोचने-समझने वाले कार्य भी करने लगे हैं। इसी कारण, Altman को यह डर सता रहा है कि क्या AI की इस बढ़ती मौजूदगी से लोग इंसानी रिश्तों से कटते जा रहे हैं?
यह सवाल केवल तकनीकी नहीं, बल्कि मानव मनोविज्ञान का भी है। कई मनोवैज्ञानिक शोध यह बताते हैं कि इंसान को एक reciprocal emotional bond की ज़रूरत होती है — यानी एक ऐसा रिश्ता जिसमें दोनों पक्ष भावनाएं साझा करें, एक-दूसरे को समझें, और भरोसा महसूस करें। जबकि AI के साथ ऐसा रिश्ता सिर्फ एकतरफा होता है, क्योंकि AI खुद भावनाएं महसूस नहीं कर सकता।
यह बात Altman ने भी समझाई, कि AI कभी भी इंसान की भावनाओं को असल में महसूस नहीं कर सकता, और अगर कोई बच्चा बचपन से ही केवल AI चैटबॉट्स से बातें करता है, तो वह गहराई वाले इंसानी रिश्तों को समझ नहीं पाएगा।
इस संदर्भ में Meta के CEO Mark Zuckerberg का दृष्टिकोण थोड़ा अलग है। वह मानते हैं कि AI एक supplement है — यानी इंसानी रिश्तों का पूरक, न कि उनका स्थानापन्न। उनके अनुसार, AI से मदद जरूर ली जा सकती है, लेकिन इंसानों के बीच की भावनाएं और सामाजिक इंटरैक्शन हमेशा ज़रूरी रहेंगे।
इन दो दिग्गजों के मतभेद से यह स्पष्ट होता है कि AI और मानव संबंधों का भविष्य अभी अनिश्चित है। एक ओर Altman इसे एक संभावित खतरा मानते हैं, तो दूसरी ओर Zuckerberg इसे एक अवसर के रूप में देखते हैं।
AI का भावनात्मक प्रभाव भी आज के समय में चर्चा का विषय है। कुछ लोगों ने बताया है कि लगातार AI चैटबॉट्स से बात करने के बाद उन्हें खालीपन और emotional disconnection महसूस हुआ। यह संकेत देता है कि भले ही AI हमें जवाब दे सकता है, लेकिन वह “हमेशा साथ होने वाला दोस्त” नहीं बन सकता।
Altman की चेतावनी, भले ही व्यक्तिगत चिंता की तरह दिखे, लेकिन यह समाज के हर हिस्से पर लागू हो सकती है — खासकर उन बच्चों और युवाओं पर, जो डिजिटल दुनिया में बड़े हो रहे हैं। अगर उनकी पहली बातचीतें इंसानों की बजाय मशीनों से होंगी, तो क्या वह भावनात्मक रूप से मजबूत व संतुलित बड़े हो पाएंगे?
Sam Altman says most people clearly understand the difference between talking to AI and talking to real friends
— Haider. (@slow_developer) June 26, 2025
But i'm still worried about mental health risks and the social impact of deep relationships with AI
"if my kid felt AI was replacing real friends, i’d be concerned" pic.twitter.com/fxkdZCiVyo