दुनिया भर में शोधकर्ता अब AI-टूल्स विकसित कर रहे हैं जो आँखों की गंभीर बीमारियों को बहुत पहले पहचान सकते हैं – जब उन्हें अभी पूरी तरह से पहचानना मुश्किल हो – ताकि समय रहते इलाज संभव हो सके। इनमें कुछ प्रमुख उदाहरण हैं: UK-based Moorfields Eye Hospital और UCL की स्टडी जिसमें 36,673 OCT स्कैन करके AI ने यह अनुमान लगाया कि कौन से keratoconus मरीजों को शीघ्र corneal cross-linking इलाज की ज़रूरत होगी और कौन मरीजों को सिर्फ निगरानी में रखा जा सकता है; इससे अनावश्यक काम और समय दोनों बचेंगे। दूसरी स्टडी में भारत में DR-screening सिस्टम AIDRSS का परीक्षण हुआ है, जिसमें 5,029 लोगों की retinal फंडस इमेजेस के माध्यम से diabetic retinopathy की शुरुआती अवस्थाएँ बिल्कुल सटीकता से (~92% sensitivity, 88% specificity) पहचानी गईं, जिससे बचपन से या मधुमेह से बदलती दृष्टि समय रहते संभाली जा सके।
ग्लूकोमा के मामले में भी AI ने बेहतर परिणाम दिखाए हैं। UCL की टीम ने DARC टेस्ट नामक एक प्रक्रिया बनाई है जिसमें fluorescent dye के ज़रिए apoptosing retinal cells (मरते हुए retinal cells) दिखाए जाते हैं और AI-algorithm द्वारा यह अनुमान लगाया जाता है कि रोग 18 महीने पहले बढ़ेगा। इससे इलाज प्रारंभिक चरण में किया जा सकेगा। इसके अलावा Hyderabad के LV Prasad Eye Institute में एक smartphone-based fundus camera + offline AI टूल को validate किया गया है जो glaucoma की शुरुआत से पता लगाने में लगभग 92% की सटीकता दे रहा है।
ये सभी शोध यह दिखाते हैं कि AI सिर्फ बीमारी पकड़ने से आगे बढ़ सकता है – वो यह भी बता सकता है कि किसे जल्दी इलाज की ज़रूरत है, किसे केवल नियमित निगरानी से काम चल सकता है। इससे डॉक्टरों का काम आसान होगा और मरीजों का समय और खर्च दोनों बचेंगे।
लेकिन चुनौतियाँ भी हैं: हर AI मॉडल सभी प्रकार के उपकरणों या इमेज क्वालिटी के लिए काम नहीं करता। उदाहरण के लिए OCT स्कैन अलग-अलग मशीनों से लिया गया हो, प्रकाश की स्थिति अलग हो, डेटा विविध न हो – ये सब मॉडल की सटीकता प्रभावित करते हैं। इसके अलावा, AI-स्वीकृति यानी regulatory approval और नैतिक मानदंड (consent, data privacy) सुनिश्चित करना ज़रूरी है।
निष्कर्ष यह कि AI की ये क्षमताएँ आशाजनक हैं – समय रहते उपचार, अँधेपन को कम करना, और आँखों की देखभाल को अधिक न्यायसंगत और सुलभ बनाना संभव हो सकता है। यदि इन टूल्स को सामुदायिक स्वास्थ्य प्रणाली में शामिल किया जाएः screening कैम्प, ग्रामीण क्षेत्रों में सहज व्यवस्था, awareness बढ़ी हो – तो लाखों लोगों की दृष्टि बच सकती है।
Can Multimodal Large Language Models Diagnose Diabetic Retinopathy from Fundus Photos? A Quantitative Evaluationhttps://t.co/I5COcQXun9#ophthalmology pic.twitter.com/FFvQfFNHhR
— Ophthalmology (@AAOjournal) September 12, 2025
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