AI से जन्मा मेडिकल एथिक्स संकट: डॉक्टरों और मरीजों के लिए नई चुनौती

हेल्थकेयर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। डॉक्टर अब मरीजों के एक्स-रे, एमआरआई और मेडिकल रिपोर्ट पढ़ने के लिए AI टूल्स की मदद ले रहे हैं। लेकिन इसी बीच विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह तकनीक एक नए मेडिकल एथिक्स संकट (AI-borne medical ethics crisis) को जन्म दे रही है।

सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर AI गलत निदान कर दे तो जिम्मेदारी किसकी होगी – डॉक्टर की या तकनीक बनाने वाली कंपनी की? कई मामलों में AI टूल्स ने मरीजों को गलत रिपोर्ट दी है, जिसके कारण इलाज में देरी और अनावश्यक दवाइयाँ लिखी गईं। यह सीधे-सीधे मेडिकल एथिक्स का उल्लंघन माना जा रहा है।

दूसरा बड़ा मुद्दा है डेटा प्राइवेसी। मरीजों का निजी मेडिकल डेटा बड़े AI सर्वर पर स्टोर होता है। इस डेटा का गलत इस्तेमाल या लीक होना गंभीर खतरा बन सकता है। हेल्थकेयर में मरीज की सहमति (patient consent) हमेशा महत्वपूर्ण मानी जाती है, लेकिन AI सिस्टम में यह सवाल बड़ा हो रहा है कि क्या मरीजों को पूरी जानकारी दी जा रही है कि उनका डेटा कैसे इस्तेमाल होगा।

AI पर अत्यधिक निर्भरता भी चिंता का कारण है। डॉक्टरों के बीच यह डर बढ़ रहा है कि कहीं वे खुद clinical decision-making की क्षमता न खो दें। अगर भविष्य में इलाज पूरी तरह से AI एल्गोरिदम पर आधारित हुआ तो मानवीय संवेदनशीलता और डॉक्टर-मरीज का रिश्ता कमजोर हो सकता है।

कई देशों में अब AI को मेडिकल उपकरण (medical device) मानकर नियम लागू करने की बात हो रही है। यूरोप और अमेरिका में रेगुलेटरी एजेंसियां AI आधारित हेल्थ टूल्स के लिए नए एथिकल गाइडलाइंस बनाने पर काम कर रही हैं। भारत में भी नीति आयोग और स्वास्थ्य मंत्रालय इस मुद्दे पर ध्यान दे रहे हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि AI का इस्तेमाल पूरी तरह रोकना संभव नहीं है, लेकिन इसे “सहायक टूल” (assistive tool) के रूप में ही अपनाना होगा। अंतिम निर्णय डॉक्टर के पास होना चाहिए, ताकि एथिक्स और मरीज के भरोसे दोनों सुरक्षित रहें।

AI ने हेल्थकेयर को नई दिशा दी है, लेकिन इसके साथ ही एक गहरा सवाल भी खड़ा कर दिया है: क्या टेक्नोलॉजी इंसानी नैतिकता की जगह ले सकती है?

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