भारत में मानसून का समय खेती-बाड़ी के लिए जीवन-मर्यादा है। बरसात का आरंभ, उसकी देर-जल्दी, और बीच में आने वाले सूखे या बारिश में रुकावट किसान के लिए फ़ैसले का समय होता है। अब Google Research का NeuralGCM मॉडल, University of Chicago की टीम के साथ मिलकर, भारतीय किसानों को मानसून की शुरुआत और अन्य मौसम पैटर्न का परिचालन-स्तर पर पूर्व अनुमान देने लगा है। इस पहल से लगभग 38 मिलियन किसानों को फायदा हुआ है।
NeuralGCM क्या है और कैसे काम करता है
- क्या है NeuralGCM: यह एक AI-मॉडल है जो पारंपरिक physics-based मौसम मॉडलिंग को machine learning के साथ जोड़ता है। यानी, पुराने बुने हुए नियमों (जैसे वायुमंडल की भौतिक नियम) + पिछले दशकों के मौसम डेटा से सीखना।
- कम संसाधन में काम: इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि बड़े supercomputer की ज़रूरत न हो। साधारण लैपटॉप पर भी इस तरह के AI मॉडल प्रयोग चल सकते हैं।
- स्थानीय पूर्वानुमान (Localized Forecasts): पूरे भारत में ज़िला-स्तर / राज्य-स्तर पर किसानों को rainfall onset (मानसून शुरू होने), बारिश के पैटर्न, और बीच-बीच में होने वाले सूखे की स्थिति की जानकारी मिलती है।
किसानों को कैसी मदद मिल रही है
सुविधा | किसान कैसे लाभ उठा रहे हैं |
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बेहतर समय पर बुवाई निर्णय | अगर पता हो कि मानसून आने वाला है या उसमें देरी होगी, तो किसान बेहतर समय पर बीज़ बो सकते हैं, नर्सरी तैयार कर सकते हैं। |
बीज, फसल प्रकार और संसाधन योजना | बारिश के अनुमान के अनुसार किस प्रकार की फसल बोनी है, कितनी मात्रा में बीज चाहिए, और उर्वरक / पानी की व्यवस्था कैसे करें — ये निर्णय बेहतर हों सकते हैं। |
आर्थिक बचत और आय वृद्धि | अनिश्चित मानसून की वजह से होने वाले नुकसान कम होंगे। अनुमान सही होने पर किसान अपनी लागत बचा सकते हैं और अच्छी पैदावार कर सकते हैं। ([The Tech Buzz][2]) |
समय से सूचना प्राप्त करना (Advance Alerts) | मानसून की शुरुआत या बारिश में बदलाव की सूचना किसान को 3-4 सप्ताह पहले SMS आदि मीडिया से मिल रही है, जिससे तैयारी करने का समय मिलता है। |
अभी की चुनौतियाँ
- स्थानीय विविधता वाला अनुमान: भारत में मौसम बहुत विविध है; एक राज्य में काम कर रहा पूर्वानुमान दूसरे राज्य में ठीक न हो क्योंकि भू-स्थल, समुद्री प्रभाव, स्थानीय जलवायु आदि अलग हैं।
- डेटा की गुणवत्ता और उपलब्धता: पुराने मौसम डेटा, स्थानीय मौसम मापन केंद्र (weather stations) और सटीकता पर निर्भर करता है। अगर डेटा अधूरा हो तो अनुमान कम भरोसेमंद होगा।
- संवाद की पहुंच (Communication Access): SMS या मोबाइल नेटवर्क की सुविधा सभी जगह नहीं होती; जिन किसानों को सूचना नहीं मिलती, वे पीछे रह जाते हैं।
- भविष्य की अनिश्चितताएँ: जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की पारंपरिक दिशा-ढांचा बदल रहा है; AI मॉडल को लगातार अपडेट करना होगा।
क्या हो रहा है, उदाहरण
- इस वर्ष, करीब 38 मिलियन किसानों को AI-पूर्वानुमान via SMS भेजा गया।
- पूर्वानुमानों ने लगभग 20-दिन की मध्यम-मौसम सूखे (mid-season dry spell) का अनुमान लगा लिया था, जो पारंपरिक मॉडल मुश्किल से पकड़ पाते हैं।
- भारत के कृषि मंत्रालय द्वारा m-Kisan सेवा या अन्य सरकारी माध्यमों से चेतावनियाँ भेजी गईं जिनसे किसानों को बारिश की देरी या असामान्य मौसम पैटर्न के लिए तैयार होने में मदद मिली।
आगे की दिशा
- स्थानीय मौसम स्टेशनों की संख्या बढ़ाना ताकि डेटा और बेहतर हो सके।
- उपयोग में आसान मोबाइल ऐप्स या वॉयस आधारित सूचनाएँ बढ़ाना, ताकि कम साक्षर किसान भी लाभ उठा सकें।
- AI मॉडल को लगातार अपडेट करना और नए मौसम पैटर्नों को शामिल करना।
- सरकार-NGO-प्राइवेट सेक्टर की साझेदारी ताकि ये सेवाएँ दूरदराज के और कमजोर समुदायों तक पहुँचें।
निष्कर्ष
NeuralGCM जैसे AI टूल्स यह दिखाते हैं कि आधुनिक तकनीक किसानों के लिए सिर्फ “उच्च-तकनीकी” विचार नहीं रह गया है बल्कि दिन-प्रतिदिन की ज़रूरत बन चुका है। मौसम की अनिश्चितता, बदलता मानसून और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच, ऐसे पूर्वानुमान किसानों को समय रहते निर्णय लेने, रिस्क कम करने और आय बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
Lanina, -ve IOD combo again for Northeast Monsoon
— Prassanna (@Prassanna_N) September 16, 2025
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Enhanced area of convection: Indo-China to West Pacific
Expect more laddoos from Bay targetting East coasts of India
North TN to Delta primary hotspot for major rainfall events
Monsoon extension after Dec possible for TN pic.twitter.com/hyIyTBWmIi
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