अमेरिका में H-1B वीज़ा फीस में हाल ही में हुई भारी बढ़ोतरी ने टेक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेक्टर को बड़ा झटका दिया है। पहले से ही टैलेंट वॉर झेल रही कंपनियों के सामने अब कॉस्ट बढ़ने और हायरिंग पॉलिसी बदलने की चुनौती खड़ी हो गई है।
AI कंपनियां लंबे समय से भारत और अन्य देशों से इंजीनियर्स और रिसर्चर्स को H-1B वीज़ा के जरिए अमेरिका बुलाती रही हैं। लेकिन अब नई फीस स्ट्रक्चर के कारण कंपनियों को एक-एक हायरिंग पर हजारों डॉलर ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे। इसका सीधा असर AI स्टार्टअप्स और मिड-साइज़ कंपनियों पर पड़ेगा, जो इतने भारी खर्च को वहन नहीं कर पाएंगी।
इस बदलाव के चलते कई कंपनियां अब सोच रही हैं कि वे रिमोट वर्किंग, ऑफशोर डेवलपमेंट सेंटर्स और लोकल टैलेंट पर ज्यादा फोकस करें। खासकर भारत जैसे देशों में, जहां AI टैलेंट तेजी से बढ़ रहा है, कंपनियां अब वहीं पर रिसर्च लैब्स और इनोवेशन हब बनाने की तैयारी कर रही हैं।
टेक इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का मानना है कि H-1B वीज़ा फीस बढ़ोतरी से अमेरिकी कंपनियों को अल्पकालिक झटका तो लगेगा, लेकिन लंबे समय में यह ग्लोबल AI टैलेंट इकोसिस्टम को मजबूत करेगा। इससे अमेरिका के बाहर भी AI इंडस्ट्री में निवेश और नौकरियों के नए अवसर पैदा होंगे।
यह कदम अमेरिका की इमिग्रेशन पॉलिसी और AI सेक्टर की हायरिंग स्ट्रेटेजी दोनों में बड़े बदलाव की शुरुआत साबित हो सकता है।
President Trump just announced a $100,000 fee for hiring H-1B workers.
— Free (@KaladinFree) September 19, 2025
My guess is we’ll see the AI companies release AGI in the next 6-12 months, thus making the need for humans in those jobs (H-1B or American) obsolete anyway.
pic.twitter.com/6Rqu9C6MCk
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