NVIDIA और OpenAI का $100B डील: 10 GW GPUs से सुपरइंटेलिजेंस की रेस, लेकिन बिजली और AI बबल का खतरा बढ़ा!

NVIDIA और OpenAI की नई डील टेक्नोलॉजी की दुनिया में बड़ी हलचल मचा रही है। खबर है कि NVIDIA ने OpenAI में करीब $100 बिलियन का निवेश किया है, जिसके तहत 10 गीगावॉट GPUs की शक्ति उपलब्ध कराई जाएगी। यह सौदा केवल पैसों तक सीमित नहीं है बल्कि इसे एक “सर्कुलर डील” कहा जा रहा है। मतलब OpenAI NVIDIA के GPUs खरीदेगा और उसी से उत्पन्न हुई कमाई NVIDIA की ओर वापस जाएगी। इस चक्र के जरिए दोनों कंपनियां अपने बिज़नेस को लंबे समय तक टिकाए रखने की कोशिश कर रही हैं।

यह निवेश सीधे तौर पर सुपरइंटेलिजेंस बनाने की रेस से जुड़ा है। OpenAI का लक्ष्य पहले से ही आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस यानी AGI तक पहुंचना है। इसके लिए उसे विशाल कंप्यूटिंग पावर की ज़रूरत है। NVIDIA पहले से ही GPU मार्केट में लीडर है और अब इस साझेदारी के बाद OpenAI के पास ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर होगा, जिसकी तुलना शायद ही किसी कंपनी से हो सके।

लेकिन इस खबर के साथ सबसे बड़ा सवाल ऊर्जा खपत को लेकर उठ रहा है। रिसर्चर्स के मुताबिक साल 2025 तक केवल AI डेटा सेंटर्स को ही 10 गीगावॉट अतिरिक्त बिजली की जरूरत पड़ेगी। तुलना करें तो यह ऊर्जा खपत पूरे अमेरिकी राज्य Utah की कुल क्षमता से भी ज्यादा है। यानी AI के नाम पर जितना इन्फ्रास्ट्रक्चर बन रहा है, वह सीधा-सीधा वैश्विक पावर ग्रिड्स पर दबाव डाल सकता है।

University of Michigan की एक रिपोर्ट के अनुसार AI ट्रेनिंग में इस्तेमाल होने वाली ऊर्जा का लगभग 30% हिस्सा बर्बाद हो जाता है। यह बर्बादी इसलिए होती है क्योंकि मॉडल ट्रेनिंग के दौरान हार्डवेयर पूरी क्षमता से ऑप्टिमाइज़ नहीं होता और बिजली का बड़ा हिस्सा हीट और निष्क्रियता में चला जाता है। इसका मतलब यह है कि जितना ज्यादा AI मॉडल ट्रेन होंगे, उतना ही ज्यादा बिजली और संसाधन बर्बाद होंगे।

अगर हम केवल GPT-3 जैसे मॉडल की बात करें, तो उसकी ट्रेनिंग में करीब 1,287 MWh बिजली की खपत हुई थी। अब जब OpenAI और NVIDIA मिलकर 10 GW GPUs पर काम करेंगे, तो अनुमान लगाया जा सकता है कि ऊर्जा की मांग कई गुना बढ़ जाएगी। यह केवल पर्यावरण पर असर नहीं डालेगा बल्कि ग्लोबल वॉर्मिंग और कार्बन एमिशन जैसी समस्याओं को भी तेज कर सकता है।

दूसरा बड़ा मुद्दा यह है कि क्या यह पूरा मॉडल केवल एक AI बबल खड़ा कर रहा है। सर्कुलर डील का मतलब है कि NVIDIA GPUs बेचेगा, OpenAI उन्हें खरीदेगा और फिर वही पैसा किसी न किसी रूप में NVIDIA के पास वापस आ जाएगा। इससे दोनों कंपनियों का रेवेन्यू तो बना रहेगा, लेकिन असली वैल्यू क्रिएशन कितना होगा, यह सवाल बना रहेगा। कई एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अगर AI का व्यावहारिक इस्तेमाल उतनी तेजी से नहीं बढ़ा, तो यह पूरा निवेश एक बबल की तरह फट सकता है।

इस डील की स्केलिंग इतनी बड़ी है कि यह ग्लोबल टेक इंडस्ट्री के लिए दिशा तय कर सकती है। OpenAI और NVIDIA मिलकर अगर सच में सुपरइंटेलिजेंस के करीब पहुंचते हैं तो यह इंसानियत की सबसे बड़ी खोज साबित होगी। लेकिन अगर यह केवल कमाई और निवेश का खेल है तो इसका असर न केवल निवेशकों बल्कि आम जनता तक पर पड़ेगा। बिजली की खपत से लेकर इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर तक हर चीज़ पर दबाव बढ़ेगा।

लंबी अवधि में यह साझेदारी AI रिसर्च को तेजी से आगे जरूर बढ़ाएगी, लेकिन इसके साथ आने वाले खतरे भी उतने ही गंभीर हैं। पावर ग्रिड्स पर लोड, ऊर्जा की बर्बादी और AI बबल का रिस्क इस डील को विवादास्पद बना रहा है। टेक्नोलॉजी की दुनिया में जहां हर कोई AI के भविष्य को लेकर उत्साहित है, वहीं यह डील हमें यह भी याद दिलाती है कि हर प्रगति की कीमत चुकानी पड़ती है।