AI Reels से बदल रही है बिहार की चुनावी राजनीति: मतदाताओं पर कैसा असर?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में चुनावी प्रचार का स्वरूप सड़कों और रैलियों से बदलकर सोशल मीडिया, विशेषकर reel-video प्लेटफार्मों की ओर हुआ है जहाँ राजनीतिक दल AI-उपयुक्त वीडियो और सिंथेटिक कंटेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो कि मनोरंजन, व्यंग्य और संदेश फैलाने का संयोजन हैं।

BJP, JDU, Congress और RJD सहित मुख्य पार्टियों ने Instagram और Meta प्लेटफार्मों पर AI द्वारा निर्मित reels की संख्या बढ़ा दी है, जैसे कि BJP ने करीब 61 reels पोस्ट किए हैं जो पूर्ण या आंशिक रूप से AI-generated हैं, वहीं JDU ने लगभग 58 ऐसे reels का प्रयोग किया है; Congress ने 34 और RJD ने 6 AI-रील्स पोस्ट किए हैं।

इन reels का फॉर्मैट कुछ इस तरह है कि एक काल्पनिक “common person” का इंटरव्यू दिखाया जाता है, या AI-कार्टून कैरेक्टर जैसे “Tabela Times” नामक बफ़ेलो-चेहरे वाले एंकर का उपयोग होता है, जो विपक्ष की कमियों को व्यंग्यात्मक तरीके से उजागर करते हैं।

कुछ वीडियो में राहुल गांधी, तेजस्वी यादव या अन्य नेता ऐसे संवाद देते दिखाए गए हैं जो वास्तविक नहीं हुए; जैसे “vote chori” का आरोप लगाने वाले वीडियो जिन्हें ECI ने misleading या synthetic बताया है। ऐसे कंटेंट में अक्सर “AI-Generated”, “Synthetic Content” जैसे disclaimers नहीं होते, जिससे दर्शकों को यह विश्वास हो जाता है कि ये वीडियो वास्तविक घटनाएँ हैं।

चुनाव आयोग ने AI और synthetic content के misuse को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि चुनावी प्रचारों में AI द्वारा बने वीडियो स्पष्ट रूप से labelled हों और फेक वीडियो / deepfake उपयोग से बचा जाए। AI reels के माध्यम से दलों ने युवा वोटर्स का ध्यान आकर्षित करने के लिए ग्लॉसी प्रभावों, हास्य और फेमस म्यूज़िक ट्रेंड्स का इस्तेमाल किया है, जिससे संदेश जल्दी फैलता है और याद रहता है।

इसके अलावा, कुछ unofficial social media पेजें जो किसी पार्टी से सीधा जुड़ी नहीं हैं, ‘proxy’ प्रचार मशीन की तरह काम कर रही हैं; ये पेज बुनियादी राजनीतिक नरेटिव्स, विरोध के आरोप और उपलब्धियों को बड़े-पैमाने पर फैलाते हैं, reels/videos/पॉस्ट्स के जरिये।

इस डिजिटल प्रवृत्ति से मतदाताओं की समझ और राय बनाने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है क्योंकि सॉर्ट वीडियो सजेस्ट किये जाते हैं, शेयर्स और लाइक्स बढ़ते हैं, और संदेश वायरल होते हैं, कई बार बिना तथ्य जांच के।

इस तरह AI reels ने प्रचार के प्रक्रिया को तेज कर दिया है, सीमाएँ कम कर दी हैं कि कौन किस तक पहुँच सकता है, क्योंकि इंटरनेट और स्मार्टफोन की पहुँच बढ़ी है। लेकिन इस बदलाव के साथ कई चिंताएँ भी उठ रही हैं जैसे misinformation, पहचान/प्रामाणिकता की समस्या, वोटर्स को भ्रमित करने वाले वीडियो, deepfake-जैसे संशोधन, और नैतिकता एवं पारदर्शिता की कमी। चुनाव आयोग ने कहा है कि यदि कोई वीडियो synthetic है तो वह स्पष्ट रूप से label होना चाहिए, और राजनीतिक दलों को ऐसे content की रिकॉर्डिंग रखनी चाहिए।

मतदाता अब-अब पता कर सकते हैं कि कौन से reels सिर्फ मनोरंजन हैं और कौन से वास्तविक आरोपों वाले हैं, लेकिन डिजिटल साक्षरता कम होने के कारण खासतौर पर ग्रामीण/कम शिक्षा वाले समुदायों में AI reels का प्रभाव अधिक हो सकता है। इस कारण सामाजिक मीडिया प्लेटफार्मों और समाचार माध्यमों को fact-check, content moderation, और voter awareness कार्यक्रमों को तेज करना होगा ताकि चुनावी प्रचार स्वस्थ और पारदर्शी हो।

इस बदलाव ने यह दिखाया है कि चुनाव आज सिर्फ रोड शो या भाषणों से नहीं जीते जाते, बल्कि algorithms, virality, और digital storytelling से भी। AI-powered reels राजनीतिक संदेश देने का नया माध्यम बन गए हैं, जिसका असर चुनावी रणनीतियों पर गहरा होगा और भविष्य के चुनावों में इस तरह की डिजिटल रणनीतियाँ और उभरेंगी।