AI वीडियो टेक्नोलॉजी इन दिनों केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं रह गयी; ये अब फेक न्यूज फैलाने का एक शक्तिशाली हथियार बन चुकी है। DeepMind द्वारा लॉन्च किया गया Veo 3 टूल विशेष रूप से चर्चा में है क्योंकि यह टेक्स्ट प्रॉम्प्ट्स से ऐसी वीडियो-क्लिप्स जनरेट कर सकता है जो देखने में और सुनने में सजीव लगती हैं। अल जज़ीरा की रिपोर्ट में सामने आया है कि Veo 3 के ज़रिये कुछ विवादित वीडियो सुर्खियों में आए हैं – उनमें कुछ वीडियो विरोध प्रदर्शनों या हवा में मिसाइल हमलों का झूठा चित्रण करते हैं।
भारत में भी Fake Videos का खतरा बढ़ रहा है। Lok Sabha चुनाव, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की झूठी क्लिप्स, और सामाजिक विवादों में लोगों द्वारा AI-जनित वीडियो क्लिप्स साझा किए जा रहे हैं – अक्सर ऑडियो क्लोनिंग, Deepfake तकनीक, और Misleading टाइटल/कैप्शन के साथ।
एक रिसर्च पेपर ने यह दिखाया है कि डिजिटल और टेक्नोलॉजी संसाधन कम होने वाले क्षेत्रों में लोग ऐसे वीडियो देख कर आसानी से गुमराह हो जाते हैं, क्योंकि वहां मीडिया साक्षरता (media literacy) कम है।
नीति-निर्माताओं और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने इस समस्या के खिलाफ कदम उठाने शुरू कर दिये हैं। भारत में एक पार्लियामेंटरी कमिटी ने सुझाव दिया है कि AI जनित वीडियोज़/क्लिप्स पर लेबल लगाना अनिवार्य होना चाहिए और AI कंटेंट क्रिएटर्स को लाइसेंस की आवश्यकता होनी चाहिए।
इसके अलावा साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ कह रहे हैं कि detection tools जैसे fake video/video+text mismatch, watermarks, metadata verification और human-oversight ज़रूरी हो गयी है। जहां टेक-कंपनियों ने SynthID जैसे watermarking सिस्टम पेश किए हैं, वही इन उपायों की मर्यादा और प्रभावशीलता अभी भी परीक्षण के अधीन है।
You can't trust billboards.
— Nas (@Nas_tech_AI) September 2, 2025
But that trend was a lie. The GTA 6 ad was made with a Higgsfield app.
Their Billboard Nano Banana App started a viral wave based on a fake ad.
Let's get into it. pic.twitter.com/6HfZR7jed2
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