AICTE ने PhD के शोध पत्रों में AI-उपयोग की जिम्मेदारी तय की: घोषणा और नियम

AICTE (All India Council for Technical Education) की एक टास्क फोर्स ने हाल ही में तकनीकी शिक्षा में PhD उम्मीदवारों के लिए कुछ नए नियमों की सिफारिश की है जिसमें शोधकर्ता को यह बताना होगा कि उन्होंने अपने PhD thesis में AI टूल्स का कितना प्रतिशत हिस्सा उपयोग किया है, और उक्त उपयोग को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए। इन सिफारिशों में कहा गया है कि thesis में AI उपयोग 20% से अधिक नहीं होना चाहिए, और यदि AI-उपकरणों का उपयोग हुआ है तो शोधकर्ता को AI डिस्क्लेमर देना होगा, उसमें संदर्भ देना होगा कि किस प्रकार AI इस्तेमाल हुआ है और उद्धरण (references) शामिल होंगे।

नई सिफारिशों के अनुसार, शोधकर्ताओं को peer-reviewed जर्नल या सम्मेलन (conference) में प्रकाशित लेख देना अनिवार्य होगा, जिसमें शोधकर्ता First और Corresponding Author हों। यदि किसी PhD छात्र ने अपने शोध का पर्याप्त भाग Scopus Q1 जर्नल में प्रकाशित कर लिया हो तो वह 2.5 वर्षों में अपनी PhD पूरी कर सकता है। पहले ऐसा जरूरी नहीं था। यह परिवर्तन शोध की गुणवत्ता को बढ़ाने, अनुसंधान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने और AI-उपयोग के पारदर्शी (transparent) मिथकों से बचने के लिए प्रस्तावित किया गया है।

इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि शोध में plagiarism जांच होनी चाहिए, और AI-उपयोग के कारण जिन हिस्सों में content स्वतः जनित हुआ हो, उन्हें स्पष्ट लिखा जाना चाहिए कि यह AI-जनित है। AICTE टास्क फोर्स ने इस तरह के नियम लागू करने की सिफारिश की है ताकि शोध की विश्वसनीयता बनी रहे और विद्यार्थियों को भविष्य में शोध निर्देशन (guidance) और अकादमिक भूमिका में पारदर्शिता की अपेक्षा हो।

कुछ बदलावों की जिम्मेदारी संस्थानों और विश्वविद्यालयों पर होगी कि वे इस प्रस्ताव को अपनाएँ और जरूरी नियमों को PhD गाइड और पत्रिका (journal) प्रकाशन आदेशों में शामिल करें। फिलहाल यह प्रस्ताव AICTE की task force द्वारा जुलाई 2025 में तैयार किया गया है, लेकिन इसे लागू होने के लिए Ministry of Education की मंज़ूरी और Gazette Notification की ज़रूरत है।

छात्रों के लिए यह बदलाव चुनौती हो सकता है क्योंकि उन्हें AI-टूल्स का उपयोग कम प्रतिशत में करना होगा, और publication की मान्यता प्राप्त जर्नलों में लेख समय पर प्रकाशित कराना होगा। लेकिन इसके फायदे भी हैं: शोध का स्तर बढ़ेगा, अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलेगी, और शोध में पारदर्शिता एवं नैतिकता सुनिश्चित होगी।