2025 की शुरुआत में एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें एक बलूच महिला भावुक होकर सवाल करती है – “हमारे बच्चों और औरतों को आतंकवादी क्यों कहा जा रहा है?” इस वीडियो को X (Twitter) हैंडल @BaluchUpdate ने शेयर किया है और यह बलूच समुदाय के संघर्ष और पीड़ा को दर्शाता है।
सांस्कृतिक तरीके से दर्द को सहेजने की परंपरा
वीडियो में महिला कहती है कि बलूच समाज में अपने दुख-दर्द को lullabies (लोरी) और कविताओं के ज़रिए पीढ़ी दर पीढ़ी संजोया जाता है। यह बयान बताता है कि यह संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं बल्कि गहरे सांस्कृतिक और भावनात्मक स्तर पर भी जुड़ा हुआ है।
धार्मिक पहचान पर विवादास्पद टिप्पणी
इसी वीडियो के कैप्शन में यह भी कहा गया कि बलूच लोग इस्लाम नहीं बल्कि हिंगलाज माता को मानते हैं। इस तरह की धार्मिक असहमति पाकिस्तान में पहले से मौजूद तनाव को और हवा दे सकती है। यह कथन स्पष्ट करता है कि बलूच समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान मुख्यधारा की पाकिस्तानी पहचान से अलग मानी जा रही है।
बलूचिस्तान संघर्ष की पृष्ठभूमि
बलूचिस्तान में लंबे समय से अलगाववादी आंदोलन चल रहा है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) जैसे संगठन पाकिस्तान सरकार के खिलाफ हथियार उठाए हुए हैं। यह संगठन 2024 और 2025 में कई बड़े हमलों की ज़िम्मेदारी ले चुका है और पाकिस्तान ने इसे आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया है।
2025 की शुरुआत में भी BLA द्वारा कई हमले हुए, जिसमें सुरक्षाबलों को निशाना बनाया गया। इस संदर्भ में यह वीडियो और अधिक संवेदनशील हो जाता है क्योंकि यह सामाजिक और धार्मिक पक्ष के साथ-साथ सुरक्षा और राजनीति पर भी सवाल उठाता है।
राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय असर
यह वीडियो केवल एक भावुक बयान नहीं, बल्कि बलूचिस्तान की मौजूदा राजनीतिक स्थिति की गहराई को दर्शाता है। यह पाकिस्तान की आंतरिक नीतियों, अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार और मानवाधिकारों के उल्लंघन जैसे मुद्दों को उजागर करता है।
निष्कर्ष:
बलूच महिला का यह वीडियो पाकिस्तान के भीतर मौजूद उन अनकहे दर्दों को सामने लाता है जो आमतौर पर दबा दिए जाते हैं। यह ना सिर्फ बलूच लोगों की आवाज़ है, बल्कि पूरी दुनिया के सामने एक सवाल भी है – क्या किसी समुदाय की असहमति उसे आतंकवादी बना देती है?