तालिबान की नई सैन्य ताकत और अफगानिस्तान की अमेरिका-ईरान युद्ध में चेतावनी

तालिबान का हालिया मीडिया वीडियो सामने आया है, जिसमें उन्होंने अमेरिकी और NATO द्वारा छोड़ दिए गए टैंक, हेलीकॉप्टर और अन्य युद्ध सामग्री का प्रदर्शन किया है। यह हथियार अफग़ानिस्तान से 2021 में अमेरिकी और NATO सैनिकों के वापसी के समय कब्ज़े में आए थे, जैसा Reuters और AVA Press ने बताया था । इससे स्पष्ट होता है कि तालिबान आज खुद को पहले से कहीं अधिक सशक्त बना चुका है।

यह नई ताक़त तालिबान को क्षेत्रीय राजनीति में भी प्रमुख भूमिका दे रही है। खबर के अनुसार, अफ़ग़ानिस्तानी नेतृत्व ने स्पष्ट किया कि अगर अमेरिका ईरान पर कोई सैन्य कार्रवाई करता है, तो वह इसमें दखल देगा। यह बयान उस राजनीति की झलक देता है, जहां एक समय पाकिस्तान और ईरान ने तालिबान को प्रोत्साहन दिया था ।

अफ़ग़ानिस्तान–ईरान के संबंध वर्षों से जटिल रहे हैं। 2021 में तालिबान की वापसी के बाद, दोनों देशों के बीच शरणार्थियों, जल संसाधन और कट्टरपंथ के मसलों पर मतभेद बढ़े। साथ ही, ईरान ने तालिबान से लड़ने वाले विपक्षी समूहों को सैन्य सहायता देने की बात भी कही थी ।

संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान के बीच तनाव को डीपली समझने के लिए हमें व्यापक संदर्भ में देखना होगा। अमेरिका ने ईरान को विश्व स्तर पर एक चुनौती माना है, खासकर परमाणु विवाद और विभिन्न गुटों को समर्थन देने के कारण । अगर तालिबान ने इस चुनौती में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया, तो यह अफ़ग़ानिस्तान को एक बड़े भू-राजनीतिक खेल का केंद्र बना सकता है।

तालिबान के पास अब अमेरिका से मिले आधुनिक हथियार और एयरक्राफ्ट हैं। Reuters की रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान ने स्मार्ट हथियारों, night-vision साधनों और ड्रोन तक पर कब्ज़ा कर लिया है । हालांकि इनमें से कई वस्तुएँ अभी शायद इसमें इस्तेमाल के योग्य न हों, लेकिन सुरक्षा विश्लेषक मानते हैं कि इन हथियारों की उपस्थिति से तालिबान की सैन्य ताक़त में स्पष्ट वृद्धि होती है।

इसके अलावा, ईरान ने कथित तौर पर तालिबानी गुटों को प्रशिक्षण और हथियार उपलब्ध कराए हैं, जिससे अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी प्रभाव को चुनौती मिल रही है । इससे क्षेत्रीय युद्ध की स्थिति और और अधिक जटिल हो जाती है।

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के उभरते प्रभाव का असली मतलब यह है कि क्षेत्रीय स्थिरता खतरे में है। अगर अफ़ग़ानिस्तान अमेरिका, ईरान और अन्य देशों के बीच एक टकराव का मंच बनता है, तो यह दक्षिण एशिया का भू-राजनीतिक परिदृश्य बदल सकता है। सभी पड़ोसी देशों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे तालिबान के सैन्य सदृढ़ीकरण और उसके अंतरराष्ट्रीय गेम में शामिल रोल को गंभीरता से समझें।

संक्षेप में, तालिबान अब केवल एक घरेलू प्रतिरोध समूह नहीं रहा। उसके पास अब आधुनिक हथियार और सैन्य क्षमताएं हैं, उसने क्षेत्रीय बयानबाजी की शुरुआत कर दी है, और उसकी नीति वैश्विक ताकतों के बीच बने नए समीकरणों को प्रभावित कर रही है। यही वह बदलाव है जो अफ़ग़ानिस्तान को ग्लोबल राजनीति की एक अहम कड़ी बना देता है – और जिसने U.S. और NATO की रणनीतियाँ सोचने पर मजबूर कर दिया है।

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Akshay Barman

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