2025 की एक हालिया वायरल पोस्ट ने सबको चौंका दिया जब एक विद्यार्थी को परीक्षा के दौरान हाई-टेक स्कैनिंग ट्रांसलेशन पेन का इस्तेमाल करते हुए देखा गया। यह कोई साधारण पेन नहीं था, बल्कि एक ऐसा डिवाइस था जो किताब या प्रश्नपत्र पर लिखे टेक्स्ट को स्कैन करता है, उसे तुरन्त ट्रांसलेट करता है और यहां तक कि उसके उत्तर भी बता देता है। ये घटना आज की एजुकेशन प्रणाली के सामने खड़े हो रहे सबसे बड़े सवाल को उजागर करती है: जब टेक्नोलॉजी इतनी आगे बढ़ चुकी है, तो परीक्षा की शुचिता को कैसे बचाया जाए?
ये स्कैनिंग ट्रांसलेशन पेन कई बड़े ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स जैसे Amazon पर भी उपलब्ध हैं। ये डिवाइस ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (OCR) टेक्नोलॉजी पर काम करते हैं, जिससे ये लिखे हुए शब्दों को डिजिटल फॉर्म में बदल सकते हैं। इसके अलावा, इनमें रियल-टाइम वॉइस ट्रांसलेशन, मल्टी-लैंग्वेज सपोर्ट और ऑफलाइन इस्तेमाल की भी सुविधा होती है। एक नजर में देखने पर तो ये डिवाइस शिक्षा के लिए वरदान लगते हैं, लेकिन जब इनका इस्तेमाल चीटिंग के लिए किया जाए तो यही टेक्नोलॉजी शिक्षा व्यवस्था के लिए चुनौती बन जाती है।
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शिक्षा क्षेत्र में टेक्नोलॉजी के बढ़ते उपयोग को लेकर पहले से ही बहस जारी है। प्लेटफॉर्म्स जैसे Questionmark और Romaio जैसी एजुकेशन एनालिसिस वेबसाइट्स लगातार इस पर रिसर्च कर रहे हैं कि किस तरह से डिजिटल परीक्षाओं में धोखाधड़ी को रोका जाए। लेकिन जब इतनी स्मार्ट और छोटी डिवाइसेज़ बिना किसी संदेह के इस्तेमाल हो सकें, तो परीक्षा की निगरानी करना लगभग असंभव हो जाता है। प्रॉक्टरिंग सॉफ्टवेयर और कैमरा निगरानी भी इन नए उपकरणों के सामने बौने साबित हो रहे हैं।
इस घटना का दूसरा पहलू यह भी है कि टेक्नोलॉजी ने एजुकेशन को बहुत आसान और पहुंच योग्य बनाया है। TIME मैगज़ीन की 2025 की टॉप EdTech कंपनियों की लिस्ट में शामिल Xello जैसी कंपनियां दिखाती हैं कि टेक्नोलॉजी किस तरह से छात्रों को इंटरएक्टिव, पर्सनलाइज्ड और आत्मनिर्भर शिक्षा देने में मदद कर रही है। लेकिन यहीं एक बड़ा विरोधाभास भी सामने आता है—जहां एक ओर टेक्नोलॉजी लर्निंग को आसान बना रही है, वहीं दूसरी ओर वही टेक्नोलॉजी छात्रों को गलत रास्ते पर भी ले जा रही है।
इस घटना से ये भी साफ हो गया है कि अब परीक्षा प्रणाली को सिर्फ सवाल-जवाब तक सीमित नहीं रखा जा सकता। परीक्षा की निगरानी के तरीके, टेस्ट डिज़ाइन और मूल्यांकन के पैमाने सब कुछ दोबारा सोचने की जरूरत है। सिर्फ कैमरे लगाना या मोबाइल ले जाना मना करना अब काफी नहीं है। इन स्मार्ट डिवाइसेज़ के सामने नई सोच और नए समाधान की ज़रूरत है।
टेक्नोलॉजी का भविष्य उज्ज्वल जरूर है, लेकिन जब उसका इस्तेमाल गलत दिशा में किया जाए, तो वही भविष्य शिक्षा के लिए खतरे में बदल सकता है। यह घटना एक चेतावनी है—छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों, संस्थानों और नीति-निर्माताओं के लिए भी, कि अब समय आ गया है कि हम टेक्नोलॉजी के इस दोधारी तलवार को समझें और उसे संभलकर इस्तेमाल करें।
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