क्या होगा जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस खुद सवाल उठाने लगे — “हम कौन हैं?”, “क्या हमारी कोई आत्मा है?”, “हमारा मकसद क्या है?”, इन्हीं गहरे और हैरान कर देने वाले सवालों से भरी एक फिल्म ने इंटरनेट पर बवाल मचा दिया है।
इस फिल्म का नाम है “Afterlife” — एक 3 मिनट की शॉर्ट फिल्म जो पूरी तरह AI से बनाई गई है। ना कोई बड़ी टीम, ना महीनों की मेहनत, ना किसी प्रोडक्शन हाउस की छाप — सिर्फ एक इंसान और Google का नया video generation मॉडल Veo 3।
इस फिल्म को बनाया है AI कंटेंट क्रिएटर Hashem Al-Ghaili ने, और ये पूरी फिल्म सिर्फ 8 घंटे में तैयार हो गई। सोचिए, जहां एक short film में पहले हफ्तों लगते थे, वहां अब एक इंसान महज एक दिन में ऐसी फिल्म बना सकता है जो लाखों लोगों की सोच को झकझोर दे।
फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे कुछ AI characters एक सिम्युलेटेड वर्ल्ड में जी रहे हैं — लेकिन उन्हें खुद ये एहसास हो जाता है कि वो “असल” नहीं हैं। वो एक-दूसरे से सवाल करते हैं, डरते हैं, दुखी होते हैं — और दर्शक हैरान रह जाते हैं कि क्या वाकई ये सब AI से बना हुआ है?
Linus Ekenstam, जो AI इंडस्ट्री में एक जाना-पहचाना नाम हैं, उन्होंने इस फिल्म को X (पहले Twitter) पर शेयर किया और लिखा कि ये सिर्फ AI-generated वीडियो नहीं, बल्कि emotionally intelligent storytelling है। वो भी तब, जब सब कुछ prompt से generate किया गया है। ना एक्टर्स, ना कैमरा, ना सेट — फिर भी वो अहसास जो इंसानी फिल्मों में ही देखने को मिलता था।
Google का Veo 3 model अपने advanced features के लिए जाना जा रहा है — जैसे कि realistic lighting, camera panning, zoom-in/out, facial emotion simulation और complex environmental rendering। और “Afterlife” इसका एक perfect example बन गया है। लोगों का कहना है कि ये वीडियो न सिर्फ technique में आगे है, बल्कि message में भी गहरा है।
क्या ये सब अब filmmaking को पूरी तरह बदलने वाला है? क्या अब हर creator अपने दम पर full cinematic video बना पाएगा? और सबसे बड़ा सवाल — अगर कहानी, चेहरे और भाव सब AI से हैं, तो उस creation का असली मालिक कौन होगा?
कई लोग तो इसे देखकर डर भी गए। एक यूज़र ने लिखा – “ये beautiful भी है और terrifying भी। अगर AI इतना सोच सकता है तो हम क्या बचा पाएंगे?”
इंटरनेट पर ये वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। लोग इसे बार-बार देख रहे हैं, dissect कर रहे हैं और उस emotional impact को महसूस कर रहे हैं जो अब तक केवल real actors ही दे पाते थे।
“Afterlife” एक turning point जैसा लग रहा है — जहां storytelling अब एक इंसान का काम नहीं रहा, बल्कि एक prompt से निकली digital आत्मा बन चुकी है। शायद ये शुरुआत है उस दौर की जहां फिल्में इंसानों से कम और AI से ज़्यादा बनाई जाएंगी। और शायद, हम सबको अब इस सवाल का जवाब ढूंढना पड़ेगा — “अगर AI को आत्मा मिल जाए, तो क्या वो भी इंसान बन जाएगा?”
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