2025 में कनाडा एक के बाद एक ऐसी घटनाओं से गुज़रा है, जिसने उसे दुनिया के प्रमुख देशों की सुर्खियों में ला खड़ा किया है। इस साल की शुरुआत से ही कनाडा में बड़े राजनीतिक बदलाव देखने को मिले। लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे जस्टिन ट्रूडो ने इस्तीफ़ा दे दिया और उनकी जगह मार्च 2025 में मार्क कार्नी ने न सिर्फ़ प्रधानमंत्री पद की शपथ ली बल्कि लिबरल पार्टी के नेता भी बने। इसके बाद हुए चुनाव में उनकी सरकार ने बहुमत भले ही नहीं पाया, लेकिन उन्होंने एक स्थिर माइनॉरिटी सरकार बनाई, जो अब देश की दिशा तय कर रही है। कार्नी की अगुवाई में कनाडा ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी अपनी भागीदारी को मज़बूती से दिखाया। जून 2025 में कनाडा ने अल्बर्टा में G7 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की, जहाँ अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य बड़े देशों के नेताओं ने हिस्सा लिया। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने इस मौके पर कनाडा की भूमिका को सराहा और कार्नी ने NATO के रक्षा खर्च को 2% तक पहुँचाने की बात दोहराई, जिसे वह 2026 तक पूरा करना चाहते हैं। यह भी साफ किया गया कि अमेरिका पर रक्षा मामलों में अधिक निर्भर नहीं रहा जाएगा।
वहीं दूसरी ओर देश की आंतरिक स्थिति भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं रही। जंगलों में आग का कहर इस बार और भी भयानक रूप में सामने आया। मई और जून 2025 में लगभग दो हजार जंगल की आग लग चुकी हैं, जिससे करीब 3.87 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र जल चुका है। इस आग से न सिर्फ़ कनाडा के हजारों लोग प्रभावित हुए, बल्कि इसका धुआं अमेरिका और यूरोप तक फैल गया, जिससे वायु गुणवत्ता बेहद खराब हो गई। इस आग में अब तक दो लोगों की जान जा चुकी है और 40,000 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया।
इसी दौरान कनाडा की इकोनॉमी भी कुछ दबावों का सामना कर रही है। जून 2025 की बेरोज़गारी दर बढ़कर 6.4% पर पहुँच गई, जबकि पिछले महीनों में यह 6.2% थी। सिर्फ जून में ही 1,400 नौकरियां समाप्त हो गईं। वहीं दूसरी तरफ बैंक ऑफ कनाडा ने चेतावनी दी है कि अगर वैश्विक व्यापार विवाद और घरेलू खर्च यूं ही जारी रहा, तो महंगाई दर को नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय रिश्तों की बात करें तो भारत और कनाडा के बीच तनावपूर्ण हालात जारी हैं। हाल ही में ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत के प्रीमियर ने भारत के मोस्ट वांटेड अपराधी लॉरेंस बिश्नोई के गुट को आतंकी संगठन घोषित करने की मांग की है। कनाडा की खुफिया एजेंसी CSIS ने भी रिपोर्ट दी है कि खालिस्तानी संगठन देश की जमीन का इस्तेमाल भारत में हिंसा फैलाने की योजना के लिए कर रहे हैं। इससे भारत-कनाडा संबंधों में और तनाव आया है।
इसके साथ ही इमिग्रेशन नीति में भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। ट्रूडो सरकार के समय से ही इमिग्रेशन की संख्या में कटौती की योजना शुरू हो गई थी, जिसे अब और सख्त किया जा रहा है। क्यूबेक और अल्बर्टा जैसे प्रांत अपनी अलग रणनीतियाँ अपना रहे हैं – जैसे क्यूबेक में सिर्फ़ फ्रेंच भाषा बोलने वालों को प्राथमिकता दी जा रही है, और अल्बर्टा खास सेक्टर के लिए विशेष वीज़ा सुविधा पर काम कर रहा है। कुल मिलाकर, 2025 का यह साल कनाडा के लिए बदलावों, संघर्षों और अंतरराष्ट्रीय पहचान का साल बन रहा है। देश की राजनीति में नई सोच के साथ नेतृत्व बदल चुका है, तो वहीं अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के मोर्चे पर कई चुनौतियाँ सामने हैं। G7 जैसी बड़ी बैठक की मेज़बानी और NATO में रक्षा खर्च बढ़ाने की तैयारी इसे वैश्विक कूटनीति में और मज़बूत बना रही है। हालांकि, खालिस्तान जैसे मुद्दे और जंगल की आग जैसे संकट इसके लिए गंभीर चेतावनी भी हैं कि आगे का रास्ता इतना आसान नहीं होगा।
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