Central Asia से मोदी की रणनीतिक दोस्ती: आतंकवाद से लेकर ट्रेड तक की गहराई

जब-जब भारत ने अपनी सीमाओं से आगे सोचने की कोशिश की, एक रास्ता हमेशा उज़्बेकिस्तान, कज़ाख़स्तान, तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों की तरफ जाता रहा। और इस दिशा में अगर किसी भारतीय नेता ने सबसे ठोस कदम बढ़ाया है, तो वो हैं – नरेंद्र मोदी

हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात मध्य एशिया के पाँच देशों, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों से हुई। यह मुलाकात कोई सामान्य राजनीतिक मीटिंग नहीं थी। यह एक संदेश था – दोस्ती, सुरक्षा और व्यापार को नई ऊँचाई पर ले जाने का। जिस तस्वीर में मोदी इन देशों के मंत्रियों के साथ खड़े हैं, वह सिर्फ एक फोटो नहीं, बल्कि बदलते विश्व में भारत की नई भूमिका का प्रतीक है।

मध्य एशिया का यह इलाका कभी प्राचीन सिल्क रूट का हिस्सा था। भारत के व्यापारी, संस्कृति और ज्ञान का आदान-प्रदान इन्हीं रास्तों से होता था। लेकिन वक्त के साथ ये रिश्ते धुंधले हो गए। अब भारत एक बार फिर उन्हीं रास्तों को जोड़ना चाहता है, लेकिन इस बार सड़क, ट्रेन और व्यापार से नहीं, बल्कि भरोसे और रणनीति से।

इस बैठक में सुरक्षा पर खास बात हुई, खासकर अफगानिस्तान को लेकर। जब 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया, तब सिर्फ भारत ही नहीं, पूरा मध्य एशिया दहल गया। आतंकवाद, कट्टरता और अस्थिरता का डर इन देशों में गहराता गया। मोदी सरकार ने यह साफ कर दिया कि भारत आतंकवाद के खिलाफ है और ऐसे किसी भी खतरे से निपटने में सहयोग करने को तैयार है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 की India-Central Asia Dialogue में अफगानिस्तान को लेकर चिंता सबसे ऊपर थी। और ये चिंता सिर्फ विचारों में नहीं थी, बल्कि योजनाओं में भी दिखी। भारत के “International North-South Transport Corridor” जैसे प्रोजेक्ट्स का मकसद सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि भरोसे की एक मज़बूत रेखा खींचना है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये कॉरिडोर पारंपरिक shipping routes के मुकाबले 30% समय और खर्च दोनों बचा सकता है।

यही नहीं, UN Comtrade के डेटा से पता चलता है कि भारत और इन देशों के बीच व्यापार 2000 में जहाँ $1.3 बिलियन था, वो 2023 में बढ़कर $2.6 बिलियन हो गया। यानि यह रिश्ता अब सिर्फ कूटनीतिक नहीं, आर्थिक रूप से भी गहराता जा रहा है।

मगर इस रिश्ते में सबसे ख़ास बात है – एक साझा भविष्य की उम्मीद। जब एक ओर दुनिया खेमों में बँटती जा रही है, तब भारत और मध्य एशिया जैसे क्षेत्र मिलकर दिखा रहे हैं कि बातचीत, दोस्ती और भरोसे से भी एक नई दुनिया बनाई जा सकती है।

मोदी की ये कूटनीतिक चालें सिर्फ रणनीति नहीं हैं, ये भारत की आत्मा को दुनिया से जोड़ने की कोशिश हैं। और जब अगली बार आप किसी विदेशी दौरे की ख़बर देखें, तो सिर्फ हाथ मिलाने की तस्वीरों से आगे देखिएगा, वहाँ एक कोशिश छिपी होती है, जो आने वाले कल की शक्ल बदल सकती है।

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Akshay Barman

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