“कभी सोचा है, पहाड़ों के बीच, बर्फ़ीली हवाओं और भूकंप वाले ज़ोन में बना कोई ब्रिज इतना मज़बूत हो सकता है कि वो सदियों तक स्थिर खड़ा रहे? चेनाब ब्रिज ऐसा ही एक करिश्मा है, जो सिर्फ स्टील और सीमेंट से नहीं, बल्कि हौसले, विज्ञान और समर्पण से बना है।”
जम्मू-कश्मीर के ऊंचे-नीचे पहाड़ों के बीच बना यह ब्रिज, दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज है, यहां तक कि एफिल टावर [eiffel] से भी ऊंचा। 17 साल लगे इसे बनाने में। और हर साल एक नई चुनौती लेकर आया, मौसम, ज़मीन, सुरक्षा, और तकनीक।
एक वीडियो, जिसे विनायक चटर्जी ने X (ट्विटर) पर शेयर किया, इस पुल के निर्माण की बारीकियों को बेहद दिलचस्प तरीके से बताता है। इसमें दिखाया गया कि कैसे इस ब्रिज में spherical bearings और expansion joints का इस्तेमाल किया गया है, ताकि जब भूकंप आए तो पुल हिल सके लेकिन टूटे नहीं। ये तकनीक पुल के रेल डेक को भूकंप की सीधी ताकत से बचाती है।
पर सिर्फ यही नहीं, पहाड़ी इलाकों में काम करना आसान नहीं होता। ज़मीन हर दिन बदलती है, चट्टानें खिसकती हैं, और मौसम कब कहर बन जाए कोई नहीं जानता। ऐसे में इंजीनियरों ने pre-splitting, grouting, anchor block stabilization, और shotcrete जैसी उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया ताकि ब्रिज की नींव मज़बूत रहे और कोई हादसा न हो।
इस पुल की कहानी को और खास बनाती हैं प्रोफेसर गली माधवी लता, जो IISc बैंगलोर से जुड़ी रहीं। उन्होंने पूरे 17 साल इस प्रोजेक्ट पर काम किया – डिज़ाइन, स्टेबिलिटी, रिसर्च, हर पहलू पर। उनकी रिसर्च और अनुभव ने यह सुनिश्चित किया कि यह ब्रिज रिक्टर स्केल पर 8 तीव्रता तक के भूकंप, -20°C तक की ठंड, और तेज़ हवाओं को भी सहन कर सके।

उनका योगदान यह साबित करता है कि भारतीय महिलाएं भी अब इंजीनियरिंग जैसे कठिन क्षेत्रों में इतिहास रच रही हैं। चुपचाप, बिना चर्चा के, लेकिन पूरी मजबूती के साथ।
आज जब हम चेनाब ब्रिज की तस्वीरें देखते हैं, तो सिर्फ एक सुंदर संरचना नहीं दिखती – उसमें छिपा होता है भारतीय दिमाग, तकनीक और दिल की मेहनत। यह पुल हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी चुनौतियाँ हों, इंसान की सोच और कोशिश हर रुकावट को पार कर सकती है।
तो अगली बार जब आप ट्रेन में बैठकर किसी ब्रिज को पार करें, तो एक पल ठहरिए – सोचिए उन लोगों के बारे में, जिनकी वजह से यह सफर मुमकिन हो पाया है। आपका राइ हमारे लिए बहुत जरूरी हैं।
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