धरती की सतह पर जगह की कमी और तेजी से बढ़ती शहरी आबादी के बीच “Earth Scraper” एक बेहद अनोखा और साहसी विचार बनकर सामने आया है। यह कांसेप्ट परंपरागत गगनचुंबी इमारतों के उलट एक ऐसा ढांचा प्रस्तावित करता है जो नीचे की ओर यानी ज़मीन के भीतर बनाया जाएगा। इसे उल्टे पिरामिड के रूप में डिजाइन किया गया है, जिसमें 85 फ्लोर तक के रेजिडेंशियल और कमर्शियल स्पेस होंगे और यह लगभग 1 लाख लोगों को रहने की जगह देने में सक्षम होगा। खासकर टोक्यो और मैक्सिको सिटी जैसी भीड़भाड़ वाली जगहों के लिए यह विचार बेहद उपयोगी माना जा रहा है, जहाँ ज़मीन का विस्तार अब संभव नहीं है।
इस Earth Scraper का डिज़ाइन अपने आप में बेहद रोचक है। इसका मुख्य भाग एक बड़ा void या खाली स्थान है, जो एक काँच के गुंबद (glass dome) से ढंका होगा, जिससे प्राकृतिक रोशनी अंदर तक पहुँच सके। यह इस बात को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है कि ज़मीन के नीचे रहने वाले लोगों को सूर्य की रोशनी मिलती रहे, जिससे उनकी सेहत पर नकारात्मक असर न पड़े। खासतौर पर विटामिन D की कमी, नींद के चक्र (circadian rhythm) का बिगड़ना और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को रोका जा सके।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-जैसे कोई मंज़िल गहराई में जाती है, वैसे-वैसे सूरज की रोशनी का पहुंचना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में यह अभी स्पष्ट नहीं है कि इस डिज़ाइन की रोशनी से जुड़ी व्यवस्था कितनी प्रभावी होगी। इसपर अब तक लंबी अवधि की कोई ठोस रिसर्च उपलब्ध नहीं है जो यह साबित कर सके कि लोग लंबे समय तक ज़मीन के नीचे रहने के बावजूद पूरी तरह स्वस्थ रह सकेंगे।
Earth Scraper का एक बड़ा फायदा यह है कि यह प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप और टॉर्नेडो से सुरक्षा प्रदान कर सकता है। ज़मीन के नीचे बने ढांचे अक्सर स्थिर होते हैं और भूकंप के झटकों से कम प्रभावित होते हैं। लेकिन इस कांसेप्ट की सबसे बड़ी चुनौती है — इमरजेंसी में इतने बड़े पैमाने पर लोगों को सुरक्षित बाहर निकालना। एक लाख लोगों के लिए आपातकालीन निकासी मार्ग बनाना और उसे समय पर क्रियान्वित कर पाना, एक बेहद जटिल और महंगा काम होगा।
ऊर्जा खपत भी एक बड़ा मुद्दा है। ज़मीन के नीचे इतनी बड़ी संरचना को हवा, रोशनी, और तापमान के लिहाज़ से बनाए रखना सामान्य इमारतों से कई गुना अधिक ऊर्जा की मांग करेगा। साथ ही, आग लगने जैसी आपात स्थितियों में हवा की आपूर्ति और धुएं के निकास का प्रबंधन करना एक तकनीकी चुनौती है।
यही कारण है कि अब तक Earth Scraper सिर्फ एक विचार तक ही सीमित है। इसकी घोषणा तो सालों पहले हो चुकी थी, लेकिन अभी तक इसे किसी भी शहर में हकीकत में नहीं बदला जा सका है। वास्तुकारों और इंजीनियरों के बीच यह बहस जारी है कि क्या भविष्य में इस तरह की संरचना वास्तव में संभव होगी या यह बस एक कल्पना भर बनकर रह जाएगी।
शहरी नियोजन में इनोवेशन ज़रूरी है, लेकिन जब बात लाखों लोगों के जीवन की हो, तो सुरक्षा, स्वास्थ्य और व्यवहारिकता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। Earth Scraper निश्चित रूप से एक रोमांचक और प्रेरक विचार है, लेकिन इसके साथ जुड़े खतरे और तकनीकी बाधाएं इसे एक बड़ा जोखिम भी बनाते हैं। जब तक इन समस्याओं का समाधान नहीं होता, तब तक यह कांसेप्ट एक चर्चा का विषय तो रहेगा, लेकिन ज़मीनी हकीकत बनना मुश्किल है।