भारत के महत्वाकांक्षी Gaganyaan मिशन को लेकर हाल ही में ISRO के पूर्व चेयरमैन एस. सोमनाथ द्वारा की गई टिप्पणियाँ देश की अंतरिक्ष विज्ञान रणनीति पर एक बड़ा विचार-विमर्श शुरू कर चुकी हैं। National Space Science Symposium (NSSS) 2024 में बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन में जिन वैज्ञानिक प्रयोगों का चयन किया गया है, वे न तो रोमांचक हैं और न ही वास्तव में प्रभावशाली। उन्होंने स्पष्ट कहा कि इस स्तर की महंगी मानव उड़ान परियोजना को सही ठहराने के लिए, उसके वैज्ञानिक लक्ष्यों में नवाचार, यूनिक आइडियाज, और ज़ीरो ग्रैविटी स्थितियों से जुड़ी ठोस रिसर्च होनी चाहिए।
Somanath ने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा कि अंतरिक्ष विज्ञान में तकनीकी प्रगति के साथ-साथ स्पष्ट और दीर्घकालिक शोध दिशा होना जरूरी है। उन्होंने जोर दिया कि ISRO को सिर्फ उपग्रह या रॉकेट तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि भारत को स्पेस साइंस के ज़ीरो-ग्रैविटी इकोसिस्टम में अग्रणी बनना चाहिए। उनका यह बयान एक ऐसे समय आया है जब Gaganyaan के लिए प्रयोगों का अंतिम चयन किया जा रहा है, और वैज्ञानिक समुदाय में इसे लेकर उत्साह की बजाय उदासीनता देखी जा रही है।
Somanath ने यह भी कहा कि मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन सिर्फ “प्रेस्टीज” या “टेक्नोलॉजी डेमो” के लिए नहीं होने चाहिए। इसके पीछे स्पष्ट और प्रभावशाली वैज्ञानिक उद्देश्य होना चाहिए। यदि हम किसी इंसान को अंतरिक्ष में भेजते हैं और वहां सिर्फ वही पुराने प्रयोग दोहराते हैं जो पहले ही कई देशों ने कर लिए हैं, तो भारत की वैज्ञानिक प्रगति पर सवाल उठेंगे। उनका यह स्पष्ट संदेश था कि ISRO को अब ऐसे प्रयोगों की तलाश करनी चाहिए जो वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को मजबूत करें।
यह आलोचना एक तरफ झटका है, लेकिन दूसरी ओर एक सुधारात्मक पहल की भी शुरुआत है। क्योंकि NSSS 2026 में ISRO के ही वरिष्ठ वैज्ञानिक वी. नारायणन ने भी यही बात दोहराई थी कि अब भविष्य के मिशनों में वैज्ञानिक प्रयोगों को “वेल-थॉट-आउट और कॉस्ट-इफेक्टिव” बनाना होगा। यानी अब ISRO सिर्फ रॉकेट छोड़ने वाली संस्था नहीं रहेगी, बल्कि वैज्ञानिक उद्देश्यों और परिणामों पर केंद्रित संगठन के रूप में खुद को परिभाषित करेगा।
Gaganyaan मिशन भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान होगा, और इसकी लागत हजारों करोड़ रुपये में है। Somanath ने बिना लाग-लपेट के कहा कि इस खर्च को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से “जस्टिफाई” करना जरूरी है। अगर उसमें शामिल प्रयोग छात्रों के लेवल के सामान्य बायोलॉजिकल या केमिकल रिएक्शन जैसे होंगे, तो इससे जनता और वैज्ञानिक समुदाय का भरोसा कमजोर होगा।
इस मिशन का एक महत्वपूर्ण पहलू ज़ीरो ग्रैविटी में अनुसंधान है। दुनिया के कई देश, जैसे अमेरिका, रूस और चीन, वर्षों से ऐसे वातावरण में फिज़ियोलॉजी, मटेरियल साइंस और मेडिकल साइंस पर उन्नत प्रयोग कर चुके हैं। लेकिन भारत इस क्षेत्र में अभी शुरुआती दौर में है। Somanath चाहते हैं कि भारत भी इस दिशा में गंभीरता से आगे बढ़े और ज़ीरो ग्रैविटी के प्रभावों पर नए रिसर्च मॉडल तैयार करे – जो कि भविष्य की अंतरिक्ष बस्तियों, चंद्र मिशन और मंगल अभियानों के लिए आधार बन सकें।
इसके अलावा उन्होंने कहा कि Gaganyaan जैसे मिशन सिर्फ तकनीकी प्रदर्शन नहीं होने चाहिए, बल्कि उन्हें एक वैज्ञानिक आंदोलन का हिस्सा बनाना चाहिए – जहां भारत के विश्वविद्यालय, शोध संस्थान, और निजी कंपनियां एकसाथ मिलकर काम करें। उन्होंने NASA की नीति का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे अमेरिका में मानव मिशनों को बड़े वैज्ञानिक कॉन्ट्रिब्यूशन से जोड़ा जाता है।
Somanath की यह आलोचना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे न केवल ISRO के पूर्व प्रमुख हैं, बल्कि उन्होंने Gaganyaan की शुरुआती योजनाओं और परीक्षणों में सक्रिय भूमिका निभाई थी। उनकी यह टिप्पणी किसी बाहरी व्यक्ति की आलोचना नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार अंदरूनी आवाज़ है – जो सुधार की मांग कर रही है।
ISRO में कई वरिष्ठ वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं कि अब समय आ गया है जब भारत को स्पेस मिशन की वैज्ञानिक गुणवत्ता पर उतना ही ध्यान देना होगा जितना तकनीकी प्रदर्शन पर दिया जाता है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो हम अंतरिक्ष में मौजूद तो रहेंगे, लेकिन उस स्तर की वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल नहीं कर पाएंगे जिनकी हमें जरूरत है।
यह भाषण आने वाले समय में ISRO की नीतियों और प्रयोगों की दिशा बदल सकता है। संभव है कि Gaganyaan के बाद के संस्करणों या अन्य मानव मिशनों में अब वैज्ञानिक समुदाय की भागीदारी और रिसर्च की गुणवत्ता पर ज्यादा फोकस किया जाए। यदि ऐसा हुआ, तो यह न सिर्फ ISRO के लिए, बल्कि भारत की वैश्विक वैज्ञानिक छवि के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि होगी।
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S. Somanath ने Gaganyaan मिशन की कौन सी बात पर असंतोष जताया?
उन्होंने Gaganyaan मिशन के लिए चुने गए वैज्ञानिक प्रयोगों को रोमांचहीन और साधारण बताया।
Gaganyaan मिशन में कौन-से प्रयोग किए जा रहे हैं?
अभी तक ज़्यादातर प्रयोग सामान्य बायोलॉजिकल और रसायन विज्ञान से जुड़े हैं, जिनमें नवाचार की कमी बताई गई है।
Somanath का क्या सुझाव है?
उन्होंने ज़ीरो ग्रैविटी में नए और प्रभावशाली प्रयोगों पर फोकस करने और मिशन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से और मज़बूत बनाने की सलाह दी।
क्या ISRO अब Gaganyaan के प्रयोगों में बदलाव करेगा?
भविष्य में ISRO वैज्ञानिक गुणवत्ता और रणनीतिक प्रयोगों पर ज़्यादा ध्यान देगा, जैसा कि कई वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने भी कहा है।
Gaganyaan मिशन कब लॉन्च होने वाला है?
Gaganyaan की मानवयुक्त उड़ान की संभावित तारीख 2025 के अंत तक मानी जा रही है।