भारतीय सेना भविष्य की लड़ाइयों के लिए खुद को एक नई दिशा में ढाल रही है। अब सिर्फ बंदूक या टैंक चलाना ही नहीं, बल्कि हर जवान को ड्रोन जैसे हाई-टेक उपकरणों को भी चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। एक वायरल वीडियो के जरिए सामने आया है कि सेना का यह उन्नत ड्रोन ट्रेनिंग प्रोग्राम कैसे पूरे देश में सक्रिय रूप से लागू किया जा रहा है। इस मिशन का उद्देश्य है कि 2027 तक हर सैनिक ड्रोन ऑपरेशन के लिए तैयार हो जाए – और इसके लिए सेना ने ₹390 करोड़ का भारी निवेश किया है।
इस ट्रेनिंग प्रोग्राम को ARTRAC (Army Training Command) द्वारा तैयार किया गया है। इसके तहत न केवल फील्ड ट्रेनिंग दी जा रही है, बल्कि क्लासरूम-आधारित इमर्सिव लर्निंग भी शामिल है, जिसमें सिमुलेटर, साइबर वॉरफेयर मॉडल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की समझ भी शामिल की गई है। इसका लक्ष्य सैनिकों की सोच को टेक्नोलॉजिकल दिशा में ले जाना है ताकि वे भविष्य के किसी भी युद्ध परिदृश्य के लिए तैयार हो सकें।
ट्रेनिंग का विशेष हिस्सा है – ऑब्स्टेकल-बेस्ड फ्लाइट सिस्टम। इसमें जवानों को विभिन्न प्रकार की कठिन परिस्थितियों में ड्रोन उड़ाने का अभ्यास कराया जाता है, जैसे संकरी गलियों में नेविगेशन, ऑटोमैटिक फॉलो, और हवाई सर्वे लर्निंग। इससे उनकी फ्लाइट स्किल्स और मिशन-प्रेसिजन में सुधार होता है। इसके अलावा, सिम्युलेटर-आधारित ट्रेनिंग द्वारा जवानों को बार-बार अभ्यास कराया जाता है ताकि असली फील्ड में वे गलतियां न करें।
यह प्रोग्राम सिर्फ ट्रेनिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सेना की पूरी रणनीतिक सोच का हिस्सा है। दरअसल, भारतीय सेना ने 2030 तक 33 नई तकनीकों को अपनाने की योजना बनाई है, जिनमें ड्रोन, AI, साइबर डिफेंस, वर्चुअल वारफेयर जैसे क्षेत्र शामिल हैं। अभी तक 18,000 से अधिक सैनिकों को 2024-25 में ट्रेनिंग दी जा चुकी है, और 2025-26 में 12,000 और सैनिकों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य है।
भारत के लिए यह बदलाव इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आधुनिक युद्ध अब सिर्फ सीमा पर नहीं, बल्कि डिजिटल और वायवीय क्षेत्रों में भी लड़े जा रहे हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध हो या मिडल ईस्ट की जंग – ड्रोन ने युद्ध की रणनीतियों को पूरी तरह बदल दिया है। भारतीय सेना इन वैश्विक ट्रेंड्स को देखकर अब उसी दिशा में अपनी ताकत और तकनीक को आगे बढ़ा रही है।
इस प्रशिक्षण योजना के तहत विभिन्न रैंक और यूनिट्स के सैनिकों को कस्टमाइज्ड ट्रेनिंग दी जा रही है। फ्रंटलाइन इंफेंट्री को स्पाई और सर्वे ड्रोन ऑपरेशन सिखाए जा रहे हैं, जबकि इंजीनियर यूनिट्स को मैपिंग, निर्माण और निगरानी के लिए ड्रोन उपयोग में लाने की टेक्निक्स दी जा रही हैं। संचार और साइबर यूनिट्स को एंटी-ड्रोन सिस्टम और जैमिंग टेक्नोलॉजी की विशेष जानकारी दी जा रही है।
इसका एक बड़ा फोकस “मेड इन इंडिया” सिस्टम्स को अपनाना भी है। यानी भारतीय स्टार्टअप्स और कंपनियों द्वारा बनाए गए ड्रोन, सॉफ्टवेयर और ट्रेनिंग टूल्स को सेना में शामिल किया जा रहा है। इससे न केवल आत्मनिर्भर भारत के विज़न को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि देश के भीतर एक मजबूत टेक्नोलॉजिकल इकोसिस्टम भी बनेगा।
इस योजना की खास बात यह है कि यह केवल सैद्धांतिक नहीं, बल्कि एक्शन-ओरिएंटेड है। उदाहरण के लिए, ट्रेनिंग में जवानों को लाइव मिशन-सिमुलेशन, लो-विजिबिलिटी उड़ानें, और हाई-विंड स्किल ट्रेनिंग भी कराई जा रही है। साथ ही ड्रोन को कैसे टॉपोग्राफी, दुश्मन के मूवमेंट और मौसम के अनुसार मोडिफाई किया जाए – इसका भी अभ्यास कराया जा रहा है।
सेना के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि आने वाले समय में “हर यूनिट में एक ड्रोन एक्सपर्ट होना जरूरी होगा”। इससे न केवल इंटेलिजेंस और निगरानी मिशन मजबूत होंगे, बल्कि आपातकालीन स्थिति में जवानों के पास सटीक जानकारी होगी, जिससे नुकसान कम होगा और रणनीति बेहतर होगी।
2027 तक इस योजना के पूरी तरह से लागू हो जाने के बाद भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो जाएगा, जहां पर ड्रोन टेक्नोलॉजी न केवल स्पेशल फोर्सेज, बल्कि हर रैंक के जवान के हाथ में होगी। यह देश की युद्धक्षमता को पूरी तरह से एक नया आयाम देगा।
भारतीय सेना में ड्रोन ट्रेनिंग किस योजना के तहत हो रही है?
यह ARTRAC द्वारा डिजाइन किया गया प्रशिक्षण प्रोग्राम है, जिसमें ₹390 करोड़ का निवेश किया गया है।
इस योजना का लक्ष्य क्या है?
2027 तक हर सैनिक को ड्रोन ऑपरेशन में दक्ष बनाना, ताकि सेना भविष्य की तकनीकों के साथ कदम से कदम मिला सके।
अब तक कितने सैनिकों को ट्रेनिंग दी गई है?
2024-25 में 18,000 सैनिकों को और 2025-26 में 12,000 और को ट्रेनिंग दी जाएगी।
ड्रोन ट्रेनिंग में किन तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा है?
ऑब्स्टेकल-बेस्ड फ्लाइट ट्रेनिंग, सिम्युलेटर ट्रेनिंग, साइबर डिफेंस, AI आधारित नेविगेशन और मेड-इन-इंडिया ड्रोन।
यह योजना भारतीय सेना के लिए कितनी महत्वपूर्ण है?
यह सेना के “फ्यूचर-रेडी” विज़न का मुख्य हिस्सा है और 2030 तक 33 नई तकनीकों को अपनाने की योजना का पहला कदम है।
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