ईरान और इज़राइल के बीच तनाव अब सीधा युद्ध की ओर बढ़ रहा है। हाल ही में सामने आई रिपोर्ट के अनुसार, ईरान ने इज़राइल पर 800 से ज़्यादा मिसाइलें और ड्रोन एक साथ दागे, जिसमें बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ-साथ आत्मघाती ड्रोन भी शामिल थे। यह हमला हाल के दिनों में इज़राइल द्वारा लेबनान में किए गए सैन्य अभियानों के जवाब में हुआ है, जहां ईरान समर्थित हिज़्बुल्लाह को निशाना बनाया गया था। 2024 की एक NPR रिपोर्ट में बताया गया था कि इज़राइल पहले भी ऐसे एक हमले में 180 में से ज़्यादातर मिसाइलों को सफलतापूर्वक इंटरसेप्ट कर चुका है।
इस बार भी इज़राइल को अकेले नहीं लड़ना पड़ा। अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, सऊदी अरब, क़तर और जॉर्डन जैसे देशों ने मिलकर हवाई सुरक्षा में मदद की। इस सहयोग की नींव साल 2019 की एक पुरानी रॉयटर्स रिपोर्ट में भी देखी जा सकती है, जिसमें जॉर्डन को अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा $2.5 बिलियन का आर्थिक समर्थन पैकेज दिया गया था। यह सहयोग सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक सैन्य सहयोग की भी झलक देता है।
इस हमले में ईरान ने खासतौर पर HESA Shahed-136 जैसे सस्ते ड्रोन का इस्तेमाल किया। 2025 की एक विकिपीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इन ड्रोन की कीमत $20,000 से $50,000 के बीच है, लेकिन रूस को यह ड्रोन $193,000 प्रति यूनिट पर बेचे गए, जिससे ईरान को बड़ा मुनाफा और रणनीतिक लाभ मिला। Royal United Services Institute जैसे संस्थानों ने इन ड्रोन की क्षमता पर सवाल उठाए हैं, लेकिन कम लागत में ज्यादा हमला करने की क्षमता इनकी सबसे बड़ी ताकत मानी जा रही है।
इस पूरे हमले से एक बात साफ है कि अब मिडिल ईस्ट में युद्ध की दिशा बहुपक्षीय होती जा रही है, जिसमें सिर्फ इज़राइल और ईरान ही नहीं, बल्कि कई वैश्विक ताकतें शामिल हो रही हैं। यह सिर्फ सैन्य शक्ति की लड़ाई नहीं बल्कि रणनीतिक साझेदारियों की भी परीक्षा बन गई है। ऐसे में आने वाले दिनों में इस संघर्ष के और गहराने की आशंका है।
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