ISRO का ₹10,000 करोड़ लॉन्चपैड गुजरात में क्यों? तमिलनाडु के मुकाबले फैसले पर उठे सवाल

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO की हालिया घोषणा ने एक नई बहस छेड़ दी है। खबर है कि ISRO ₹10,000 करोड़ की लागत से गुजरात में एक नया लॉन्चपैड बनाने की योजना पर काम कर रहा है, जिसमें खासतौर पर PSLV और SSLV जैसे लाइट-वेट लॉन्च व्हीकल्स के लिए फैसिलिटी तैयार की जाएगी। लेकिन इस फैसले ने न केवल तकनीकी विशेषज्ञों, बल्कि नीति-निर्माताओं और आम जनता के बीच भी रणनीतिक, वैज्ञानिक और सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

एक तरफ तमिलनाडु के कुलसेकरपट्टिनम में ISRO ने ₹950 करोड़ की लागत से SSLV लॉन्चपैड के लिए 2024 में नींव रख दी थी, जहां से सीधे समुद्र की ओर लॉन्च किया जा सकता है – यह पोलर ऑर्बिट के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। दूसरी ओर गुजरात में ऐसा कोई प्राकृतिक लाभ नहीं है, बल्कि उसकी पाकिस्तान सीमा से नजदीकी सुरक्षा की दृष्टि से चिंता का विषय बन रही है।

2021 में ISRO द्वारा कराए गए एक ईंधन-क्षमता अध्ययन के अनुसार, भूमध्य रेखा (equator) के पास से रॉकेट लॉन्च करने से प्रति मिशन 10-15% ईंधन की बचत होती है। कुलसेकरपट्टिनम दक्षिण भारत में होने के कारण यह लाभ प्रदान करता है। वहीं गुजरात उत्तर में है, जिससे वहां से रॉकेट भेजने में अधिक ईंधन खर्च होगा। यही कारण है कि वैज्ञानिक समुदाय इस बात से हैरान है कि क्यों एक ऐसे क्षेत्र में इतने बड़े निवेश की योजना बनाई जा रही है जो लॉजिकल ऑपरेशनल डायनामिक्स के हिसाब से उपयुक्त नहीं लगता।

एक्स प्लेटफॉर्म पर इस विषय को लेकर जारी थ्रेड्स में सुरक्षा विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है कि गुजरात से लॉन्च होने वाले रॉकेट्स पाकिस्तान की सीमा के बेहद पास से गुजर सकते हैं, जिससे रणनीतिक खतरे पैदा हो सकते हैं। यह न केवल निगरानी और साइबर खतरों की आशंका को बढ़ाता है, बल्कि लाइव ऑपरेशन्स के दौरान संभावित दुश्मन हस्तक्षेप की संभावना भी उत्पन्न करता है।

हालांकि इसरो और केंद्र सरकार इस निवेश को औद्योगिक विकास और क्षेत्रीय संतुलन के नजरिए से भी देख सकते हैं। गुजरात पहले से ही एक औद्योगिक रूप से मजबूत राज्य है, और वहां पहले से मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर का लाभ उठाकर लागत और समय दोनों की बचत की जा सकती है। साथ ही, गुजरात के कुछ तटीय क्षेत्रों में स्वतंत्र लॉजिस्टिक कॉरिडोर और बंदरगाह सुविधाएं हैं जो स्पेस हार्डवेयर के ट्रांसपोर्टेशन को आसान बना सकती हैं।

यह भी संभव है कि सरकार इस निवेश को राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से एक रणनीतिक निर्णय मान रही हो, जहां क्षेत्रीय विकास, रोजगार, और उद्योगों को प्राथमिकता दी जा रही हो। मगर सवाल यही है कि क्या वैज्ञानिक संगठन जैसे ISRO को “सिर्फ आर्थिक या राजनीतिक लाभ” के आधार पर अपनी फैसिलिटी लोकेशन तय करनी चाहिए? खासतौर पर जब वैकल्पिक स्थान पहले से ही बेहतर लॉन्च डायनामिक्स और सुरक्षा प्रदान करता है।

विशेषज्ञ यह भी कह रहे हैं कि यदि ₹10,000 करोड़ जैसी भारी भरकम राशि को गुजरात में लगाने की बजाय कुलसेकरपट्टिनम जैसे वैज्ञानिक रूप से उपयुक्त स्थान पर लगाया जाता, तो वह भारत के स्पेस मिशन को लॉन्ग टर्म में बेहतर मदद दे सकता था। कुलसेकरपट्टिनम में सीधे समुद्र की ओर लॉन्च करने की सुविधा के कारण रॉकेट्स आबादी वाले क्षेत्र से होकर नहीं गुजरते – जो कि सुरक्षा और बीमा दोनों दृष्टिकोण से फायदेमंद है।

इस बीच यह भी गौर करने वाली बात है कि ISRO अब ज्यादा से ज्यादा कमर्शियल लॉन्च की ओर बढ़ रहा है। PSLV और SSLV दोनों की मांग वैश्विक स्तर पर छोटे और मिड-साइज सैटेलाइट के लिए तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में लॉन्च साइट की लागत, संचालन क्षमता और सुरक्षा, तीनों ही पहलुओं को वैज्ञानिक आधार पर तौलना बेहद जरूरी है।

विरोधाभास तब और गहराता है जब यह समझ में आता है कि कुलसेकरपट्टिनम लॉन्च साइट को अभी तक पूरी तरह फंड नहीं मिला है, जबकि गुजरात लॉन्चपैड के लिए ₹10,000 करोड़ की राशि प्रस्तावित हो चुकी है। इससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या ISRO की वैज्ञानिक प्राथमिकताएं अब नीति और पॉलिटिक्स के दबाव में तो नहीं आ रहीं?

ISRO को चाहिए कि वह दोनों स्थानों की तुलना करते हुए एक पारदर्शी, वैज्ञानिक और लॉन्ग-टर्म फोकस वाला निर्णय ले। क्योंकि भारत का स्पेस सेक्टर अब सिर्फ अंतरिक्ष में पहुंचने का सपना नहीं, बल्कि एक ग्लोबल मार्केट में प्रतिस्पर्धा करने वाली इंडस्ट्री भी बन चुका है। ऐसे में हर निवेश और फैसले का सीधा असर भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा और वैज्ञानिक दक्षता पर पड़ता है।

ISRO का नया लॉन्चपैड कहां बन रहा है?

ISRO ने गुजरात में ₹10,000 करोड़ के निवेश से PSLV और SSLV लॉन्चपैड बनाने की योजना बनाई है।

कुलसेकरपट्टिनम लॉन्चपैड की क्या स्थिति है?

तमिलनाडु के कुलसेकरपट्टिनम में SSLV के लिए ₹950 करोड़ के प्रोजेक्ट की 2024 में नींव रखी गई है।

गुजरात में लॉन्चपैड बनाने पर क्या खतरे हैं?

पाकिस्तान की नजदीकी सीमा के कारण सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं, साथ ही ईंधन खर्च भी ज्यादा हो सकता है।

तमिलनाडु का लॉन्चपैड वैज्ञानिक दृष्टि से बेहतर क्यों है?

यह भूमध्य रेखा के करीब है जिससे लॉन्च में 10-15% ईंधन की बचत होती है, और सीधे समुद्र की ओर लॉन्च किया जा सकता है।

क्या यह निर्णय राजनीति से प्रेरित है?

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला आर्थिक और राजनीतिक संतुलन को ध्यान में रखकर किया गया है, न कि वैज्ञानिक प्राथमिकता से।

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Akshay Barman

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