क्या आपको पता है, 1957 में पहला सैटेलाइट स्पुतनिक-1 जब आसमान में भेजा गया था, तो पूरी दुनिया ने अंतरिक्ष को एक नई नजर से देखा। लेकिन क्या किसी ने सोचा था कि एक दिन यही अंतरिक्ष हज़ारों सैटेलाइट्स से भर जाएगा?
आज, यानी साल 2025, हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहाँ 11,833 से भी ज़्यादा सैटेलाइट्स धरती के चारों ओर चक्कर काट रहे हैं। और अनुमान है कि साल के अंत तक यह संख्या 14,900 को पार कर जाएगी। ये आंकड़े जितने चौंकाने वाले हैं, उतने ही तकनीकी प्रगति के संकेत भी हैं।
आखिर इतनी तेज़ी क्यों?
इसका सबसे बड़ा कारण है SpaceX जैसी निजी कंपनियों की भूमिका। खासकर Elon Musk की Starlink परियोजना, जो दुनिया के कोने-कोने में हाई-स्पीड इंटरनेट पहुँचाने के लिए अकेले ही 12,000 से ज्यादा सैटेलाइट्स भेजने की योजना पर काम कर रही है।
इन सैटेलाइट्स को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) यानी धरती से कुछ सौ किलोमीटर ऊपर स्थापित किया जा रहा है। यही वजह है कि आजकल हर महीने में कई बार डजन भर सैटेलाइट लॉन्च हो रहे हैं। पहले जहां केवल कुछ चुनिंदा देश ही अंतरिक्ष में सैटेलाइट्स भेजते थे, आज वहां स्टार्टअप्स और प्राइवेट कंपनियाँ भी इस रेस का हिस्सा बन चुकी हैं।
स्पेस डेब्रिस: बढ़ता ख़तरा
जहाँ ये तकनीकी विकास उम्मीद जगाता है, वहीं space debris यानी अंतरिक्ष का कबाड़ एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। इतने सारे सैटेलाइट्स अगर एक ही ऑर्बिट में रहेंगे, तो टकराव का खतरा बहुत बढ़ जाएगा। यदि दो सैटेलाइट्स टकरा जाएं, तो उनके टुकड़े अन्य मिशनों के लिए खतरा बन सकते हैं।
इसलिए NASA, ESA और ITU जैसी संस्थाएं अब स्पेस ट्रैफिक मैनेजमेंट और सस्टेनेबल स्पेस ऑपरेशन की बातें कर रही हैं। एक सुरक्षित और क्लीन स्पेस के लिए अब वैश्विक नियम बनाए जा रहे हैं।
आंकड़ों में बदलाव
- 1957: पहला सैटेलाइट स्पुतनिक-1 लॉन्च
- 2020: लगभग 2,800 एक्टिव सैटेलाइट्स
- 2024: 9,000+ सैटेलाइट्स
- 2025: 11,833 एक्टिव और 14,900 अनुमानित कुल सैटेलाइट्स
भविष्य की ज़िम्मेदारी
अब यह समझना ज़रूरी हो गया है कि सिर्फ सैटेलाइट भेजना ही हमारी सफलता नहीं है। हमें उन्हें सुरक्षित, नियंत्रित और टिकाऊ तरीके से संचालित करना होगा। अगर हमने अभी ध्यान नहीं दिया, तो भविष्य में आकाश तारों से नहीं, कृत्रिम सैटेलाइट्स की रोशनी से चमकने लगेगा।
निष्कर्ष
आज जब हम अंतरिक्ष की ऊँचाइयों को छू रहे हैं, तो हमें यह भी याद रखना होगा कि आसमान सबका है, और उसे साफ-सुथरा और सुरक्षित बनाए रखना हमारी ज़िम्मेदारी है। विज्ञान के साथ जब इंसान ज़िम्मेदारी से जुड़ता है, तभी असली तरक्की होती है। आपका क्या ख्याल है? कमेंट में ज़रूर बताएं!
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